Sunday, January 27, 2013

BABU KI SAMADHI PAR KHADE HOKAR BHI BUSINESS HO SAKTA HAI BHAI....!

           Kalam se likhna jyada behtar hai..ab hindi me kaise likhe bhai..bahut muskil hai.

                                                              Kosis kar lete hai..

Aik bar to laga ki Bapu ke itne follower kaha se ho gaye? phir bhi aage badhe pata chala do photographer bula bula kar photo khich rahe hai. Deshi kya bideshi log bhi bade maze se bapu ki samadhi ke samne khade hokar photo khichwa rahe hai! Guard se pucha inhe allow kisne kiyaa..ji pata nahi..aap to sabhi ko tok rahe hai lekin inse sawal kyo nahi..us par wo bagle jhakne lage..photographer sawal se itna tang huaa...mam aapka kya ja raha hai..kuch paise hi kama rahe hai n..chori to nahi kar rahe hai? pasia kamana hai kahi bhi business kar lijiye bhale hi wo rajghat ho..log hath jodte hai jaha waha pith karke khade holkar photo khichwane me samsya kya hai....wahi kisan ghaat ...jaha parinda bhi par nahi mar raha ....hamne kaha...bhai waha bhi camera lekar khade ho jaawo......waha se nikalkar bahar jute rakne wale se pucha..bhai sahab kuch pata hai? Madam ye sachiv ji ka kiya kraya hai..nahi to hai to ye galat hi! Kuch logo ne puchana shuru kar diya..madam aap journalist hai? Dimag to bhanna gaya...aam aadmi kya sawal nahi kar sakta?










Wednesday, March 17, 2010

बरेली----ये ख़ामोशी क्यों

सदन में हंगामा हुआ, लोगो ने आरोप लगाये, मीडिया में भी खुशुर फुसुर हुई पर क्या ये उस तरीके से हुआ जैसा इसे होना चाहिए था। बरेली में बी एस पी का वोट नहीं है शायद इसलिए सबकुछ हो रहा है या कराया जा रहा है। बी जे पी चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही है। आखिर क्यों मीडिया के वैसे तेवर उभर के सामने नहीं आ रहे है ? ऐसे मुद्दों पर तो हमेसा ही वो आग उगलता आया है। राजनीतिक दल भी बहुत उत्तेजित नजर नहीं आ रहे है , क्यों? ऐसे व्यक्ति को किस आधार पार छोड़ दिया गया जिस पर पहले से इल्जाम था, आखिर केंद्र कि सरकार ने आखे क्यों बंद कर ली है? क्यों माया सब पर भारी पड़ रही है?

Tuesday, January 12, 2010

इन पर भी लगाम लगाया जाय...

बस से जब बाहर का नजारा देखते है तो लगता है कि लोग क्यों पागल हो गए है..सड़क पर कदम रखने तक के लिए जगह नहीं है ..लेकिन बड़ी बड़ी कारो को इस तरह जबरन घुसाते है जैसे उनके बाप की सड़क हो...ख्वाब देखा जाए पर किसी डिब्बे का नहीं ....लोग भले ही इन बड़ी बड़ी गाडियो को सम्पन्नता का प्रतिक माने पर जब सड़क पर निकलना होता है तो सब एक जैसे ही नजर आते है...साइकिल वाला, स्कूटर वाला, बस वाला और लम्बी गाडियो के मालिक ...सभी को इंतज़ार करना पड़ता है..पैसा दिखाना है तो कही और दिखाया जाय ...सड़क को जहनूम न बनाया जाय.....बड़ी सी गाडी और एक बुड्ढा आदमी पेपर पढ़ रहा है ...हद है यार..एक इन्सान ने इतनी जगह घेर ली...कहा तक ये जायज है...कुछ और विकल्प होना चाहिए ..सुबिधा के नाम पर सड़क को बेहाल नहीं करना चाहिए ..कुछ भी किया जाये पर इन बढती डब्बो के ढेर पर लगाम जरूर लगनी चाहिए.

Monday, January 11, 2010

कहना ही क्या जब.....

कल बहुत दिनों बाद दूरदर्शन देख रहे थे , अरसे बाद "मिले सुर मेरा तुम्हारा" सुनने को मिल रहा था ,हम भी तल्लीनता से सुनने लगे , चन्द पलों में ही न जाने कितने पीछे चले गए थे..तभी रिमोट पर उंगलिया मचली और इंग्लिश न्यूज़ चैनल पर आ गए , सामने शशी थरूर थे , जो सिर्फ कहे जा रहे थे ,शायद सुनने के मूड में नहीं थे ...एक बात और भी थी कि सामने बैठे पत्रकार ने जैसे सारा दिमाग कही और रख दिया था एक भी काउंटर सवाल उसने नहीं किया । यही समझने कि कोशिस करते रहे कि शशी थरूर एक व्यक्ति के तौर पर बात कर रहे है या फिर एक समाननीय मंत्री के तौर पर? अपने किसी भी वक्तव्य पर न तो अफ़सोस किया और बार बार मीडिया को ही कोसते रहे । तब क्या कहा जाय जब सामने बैठे पत्रकार को साप सूघ गया हो ।

Wednesday, December 16, 2009

कोपेनहेगन का होगा क्या...

ये एक ऐसा मुद्दा है ..जिस पर लिखने से काम नहीं चलने वाला..खैर अभी हम यही छोड़ते है वाकुई लिखने का भी वक़्त नहीं मिलता ..